श्री कृष्ण चालीसा
॥दोहा॥ बंशी शोभित कर मधुर, नील जलद तन श्याम।
अरुण अधर जनु बिम्बफल, नयन कमल अभिराम॥
पूर्ण इन्द्र, अरविन्द मुख, पीताम्बर शुभ साज।
जय मनमोहन मदन छवि, कृष्णचन्द्र महाराज॥
जय यदुनंदन जय जगवंदन।
जय वसुदेव देवकी नन्दन॥
जय यशुदा सुत नन्द दुलारे। जय प्रभु भक्तन के दृग तारे॥
जय नटनागर, नाग नथइया॥ कृष्ण कन्हइया धेनु चरइया॥
पुनि नख पर प्रभु गिरिवर धारो। आओ दीनन कष्ट निवारो॥
वंशी मधुर अधर धरि टेरौ। होवे पूर्ण विनय यह मेरौ॥
आओ हरि पुनि माखन चाखो। आज लाज भारत की राखो॥
गोल कपोल, चिबुक अरुणारे। मृदु मुस्कान मोहिनी डारे॥
राजित राजिव नयन विशाला। मोर मुकुट वैजन्तीमाला॥
कुंडल श्रवण, पीत पट आछे। कटि किंकिणी काछनी काछे॥
नील जलज सुन्दर तनु सोहे। छबि लखि, सुर नर मुनिमन मोहे॥
मस्तक तिलक, अलक घुँघराले। आओ कृष्ण बांसुरी वाले॥
करि पय पान, पूतनहि तार्यो। अका बका कागासुर मार्यो॥
मधुवन जलत अगिन जब ज्वाला। भै शीतल लखतहिं नंदलाला॥
सुरपति जब ब्रज चढ़्यो रिसाई। मूसर धार वारि वर्षाई॥
लगत लगत व्रज चहन बहायो। गोवर्धन नख धारि बचायो॥
लखि यसुदा मन भ्रम अधिकाई। मुख मंह चौदह भुवन दिखाई॥
दुष्ट कंस अति उधम मचायो॥ कोटि कमल जब फूल मंगायो॥
नाथि कालियहिं तब तुम लीन्हें। चरण चिह्न दै निर्भय कीन्हें॥
करि गोपिन संग रास विलासा। सबकी पूरण करी अभिलाषा॥
केतिक महा असुर संहार्यो। कंसहि केस पकड़ि दै मार्यो॥
मातपिता की बन्दि छुड़ाई ।उग्रसेन कहँ राज दिलाई॥
महि से मृतक छहों सुत लायो। मातु देवकी शोक मिटायो॥
भौमासुर मुर दैत्य संहारी। लाये षट दश सहसकुमारी॥
दै भीमहिं तृण चीर सहारा। जरासिंधु राक्षस कहँ मारा॥
असुर बकासुर आदिक मार्यो। भक्तन के तब कष्ट निवार्यो॥
दीन सुदामा के दुःख टार्यो। तंदुल तीन मूंठ मुख डार्यो॥
प्रेम के साग विदुर घर माँगे।दर्योधन के मेवा त्यागे॥
लखी प्रेम की महिमा भारी।ऐसे श्याम दीन हितकारी॥
भारत के पारथ रथ हाँके।लिये चक्र कर नहिं बल थाके॥
निज गीता के ज्ञान सुनाए।भक्तन हृदय सुधा वर्षाए॥
मीरा थी ऐसी मतवाली।विष पी गई बजाकर ताली॥
राना भेजा साँप पिटारी।शालीग्राम बने बनवारी॥
निज माया तुम विधिहिं दिखायो।उर ते संशय सकल मिटायो॥
तब शत निन्दा करि तत्काला।जीवन मुक्त भयो शिशुपाला॥
जबहिं द्रौपदी टेर लगाई।दीनानाथ लाज अब जाई॥
तुरतहि वसन बने नंदलाला।बढ़े चीर भै अरि मुँह काला॥
अस अनाथ के नाथ कन्हइया। डूबत भंवर बचावइ नइया॥
सुन्दरदास आ उर धारी।दया दृष्टि कीजै बनवारी॥
नाथ सकल मम कुमति निवारो।क्षमहु बेगि अपराध हमारो॥
खोलो पट अब दर्शन दीजै।बोलो कृष्ण कन्हइया की जै॥
दोहा यह चालीसा कृष्ण का, पाठ करै उर धारि।
अष्ट सिद्धि नवनिधि फल, लहै पदारथ चारि॥.
श्री विन्ध्येश्वरी चालीसा
दोहा
नमो नमो विन्ध्येश्वरी नमो नमो जगदम्ब.
सन्तजनों के काज में करती नही विलम्ब.
चोपाई
जय जय जय विन्ध्याचल रानी. आदि शक्ति जग विदित भवानी.
सिंहवाहिनी जय जग माता. जय जय जय त्रिभुवन सुखदाता.
कष्ट निवारणी जय जग देवी. जय जय जय सन्त असुर सुर सेवी.
महिमा अमित अपार भवानी. शेश सहस मुख वर्णत हारी.
दीनन के दुःख हरत भवानी. नहिं देख्यो तुम सम कोई दानी.
सब पर मनसा पुरवत माता. महिमा अमित जगत विख्याता.
जो जन ध्यान तुम्हारो लावे. सो तुरतहिं वांछित फ़ल पावे.
तू ही वैश्णवी तू ही रुद्राणी, तू ही शारदा अरु ब्रह्माणी.
रमा राधिका श्यामा काली, तू ही मातु सन्तन प्रतिपाली.
उमा माधवी चन्ड़ी ज्वाला, बेगि मोहि पर होहु दयाला.
तू ही हिंगलाज महारानी, तू ही शीतला अरु विज्ञानी.
दुर्गा दुर्ग विनाशिनी माता, तू ही लक्ष्मी जग सुखदाता.
तू ही जाहनवी अरु उत्राणी. हेमावति अम्बा निर्वाणी.
अश्टभुजी वाराहिनी देवा. करत विष्णु शिव जाकर सेवा.
चौसठ देवी कल्यानी. गौरी मंगला सब गुणखानी.
पाटन मुक्ता दन्त कुमारी. भद्रकाली सुन विनय हमारी.
वज्रधारिणी शोक नाशिनी. आयु रक्षिणी विन्ध्यवासिनी.
जया और विजया बैताली. मातु संकटी अरु विकराली.
नाम अनन्त तुम्हार भवानी. बरनै किमी मानुश अज्ञानी.
जा पर कृपा मातु तव होई. तो वह करै चहै मन जोई.
कृपा करहु मो पर महारानी. सिद्ध करिए अब म्म बानी.
जो नर धरै मातु पर ध्याना. ताकर सदा होए कल्याना.
विपति ताहि सपनेहु नहिं आवै. जो देवी का जाप करावै.
जो नर कहं ऋण होय आपारा. सो नर पाठ करै शत बारा.
निश्चय ऋण मोचन होई जाई.जो नर पाठ करै मन लाई.
अस्तुति जो नर पढ़ै पढ़ावै. या जग में सो अति सुख पावै
जा को व्याधि सतावै भाई. जाप करत सब दूर पराई.
जो नर अति बन्दी महं होई. बार हजार पाठ कर सोई.
निश्चय बन्दी ते छुटि जाई. सत्य वचन मम मानहु भाई.
जा पर जो कछु संकट होई. निश्चय देविहिं सुमिरै सोई.
जा कहँ पुत्र होय नहि भाई. सो नर या विधि करे उपाई.
पाँच वर्ष सो पाठ करावै. नौरातन में विप्र जिमावै.
निश्चय गोहिं प्रसन्न भवानी. पुत्र देहिं ताकहँ गुणखानी.
ध्वजा नारियल आनि चढ़ावै. विधि समेत पूजन करवावै.
नित प्रति पाठ करै मन लाई, प्रेम सहित नहिं आन उपजाई.
यह श्री विन्ध्याचल चालीसा. रंक पढ़त होवे अवनीसा.
यह जानि अचरज मानहुं भाई. कृपा दृष्टी जापर होई जाई.
जय जय जय जगमात भवानी. कृपा करहू मोहिं पर जन जानी.
जय जय जय जगमात भवानी. कृपा करहु मोहि पर जानी.
दोहा
नमो नमो विन्ध्येश्वरी नमो नमो जगदम्ब.
सन्तजनों के काज में करती नही विलम्ब.
चोपाई
जय जय जय विन्ध्याचल रानी. आदि शक्ति जग विदित भवानी.
सिंहवाहिनी जय जग माता. जय जय जय त्रिभुवन सुखदाता.
कष्ट निवारणी जय जग देवी. जय जय जय सन्त असुर सुर सेवी.
महिमा अमित अपार भवानी. शेश सहस मुख वर्णत हारी.
दीनन के दुःख हरत भवानी. नहिं देख्यो तुम सम कोई दानी.
सब पर मनसा पुरवत माता. महिमा अमित जगत विख्याता.
जो जन ध्यान तुम्हारो लावे. सो तुरतहिं वांछित फ़ल पावे.
तू ही वैश्णवी तू ही रुद्राणी, तू ही शारदा अरु ब्रह्माणी.
रमा राधिका श्यामा काली, तू ही मातु सन्तन प्रतिपाली.
उमा माधवी चन्ड़ी ज्वाला, बेगि मोहि पर होहु दयाला.
तू ही हिंगलाज महारानी, तू ही शीतला अरु विज्ञानी.
दुर्गा दुर्ग विनाशिनी माता, तू ही लक्ष्मी जग सुखदाता.
तू ही जाहनवी अरु उत्राणी. हेमावति अम्बा निर्वाणी.
अश्टभुजी वाराहिनी देवा. करत विष्णु शिव जाकर सेवा.
चौसठ देवी कल्यानी. गौरी मंगला सब गुणखानी.
पाटन मुक्ता दन्त कुमारी. भद्रकाली सुन विनय हमारी.
वज्रधारिणी शोक नाशिनी. आयु रक्षिणी विन्ध्यवासिनी.
जया और विजया बैताली. मातु संकटी अरु विकराली.
नाम अनन्त तुम्हार भवानी. बरनै किमी मानुश अज्ञानी.
जा पर कृपा मातु तव होई. तो वह करै चहै मन जोई.
कृपा करहु मो पर महारानी. सिद्ध करिए अब म्म बानी.
जो नर धरै मातु पर ध्याना. ताकर सदा होए कल्याना.
विपति ताहि सपनेहु नहिं आवै. जो देवी का जाप करावै.
जो नर कहं ऋण होय आपारा. सो नर पाठ करै शत बारा.
निश्चय ऋण मोचन होई जाई.जो नर पाठ करै मन लाई.
अस्तुति जो नर पढ़ै पढ़ावै. या जग में सो अति सुख पावै
जा को व्याधि सतावै भाई. जाप करत सब दूर पराई.
जो नर अति बन्दी महं होई. बार हजार पाठ कर सोई.
निश्चय बन्दी ते छुटि जाई. सत्य वचन मम मानहु भाई.
जा पर जो कछु संकट होई. निश्चय देविहिं सुमिरै सोई.
जा कहँ पुत्र होय नहि भाई. सो नर या विधि करे उपाई.
पाँच वर्ष सो पाठ करावै. नौरातन में विप्र जिमावै.
निश्चय गोहिं प्रसन्न भवानी. पुत्र देहिं ताकहँ गुणखानी.
ध्वजा नारियल आनि चढ़ावै. विधि समेत पूजन करवावै.
नित प्रति पाठ करै मन लाई, प्रेम सहित नहिं आन उपजाई.
यह श्री विन्ध्याचल चालीसा. रंक पढ़त होवे अवनीसा.
यह जानि अचरज मानहुं भाई. कृपा दृष्टी जापर होई जाई.
जय जय जय जगमात भवानी. कृपा करहू मोहिं पर जन जानी.
जय जय जय जगमात भवानी. कृपा करहु मोहि पर जानी.
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श्री दुर्गा चालीसा
नमो नमो दुर्गे सुख करनी. नमो नमो अम्बे दुःख हरनी.
निरंकार है ज्योति तुम्हारी. तिहूँ लोक फ़ैली उजियारी.
शशी ललाट मुख महा विशाला. नेत्र लाल भृकुटी विकराला.
रुप मातु को अधिक सुहावे. दरश करत जन अति सुख पावे.
तुम संसार शक्ति लय कीना. पालन हेतु अन्न धन दीना.
अन्न्पूर्णा हुई जग पाला. तुम ही आदि सुन्दरी बाला.
प्रलयकाल सब नाशन हारी. तुम गौरी शिव शंकर प्यारी.
शिव योगी तुम्हारे गुण गावे. ब्रह्मा विष्णु तुम्हें नित ध्यावें.
रुप सरस्वती का तुम धारा. दे सुबुद्धि ऋषि मुनिन उबारा.
धरा रुप नरसिंह को अम्बा. प्रकट भई फ़ाड़ कर खम्बा.
रक्षा कर प्रहलाद बचायो. हिरणाकुश को स्वर्ग पठायो.
लक्ष्मी रुप धरो जग माहीं. श्री नारायण अंग समाहीं.
क्षीरसिन्धु में करत विलासा. दया सिन्धु दीजै मन आसा.
हिंगलाज में तुम्ही भवानी, महिमा अमित न जात बखानी.
मातंगी धूमावती माता. भूवनेश्वरी बगला सुखदाता.
श्री भैरव तारा जग तारणि. छिन्नभाल भव दुःख निवारिणी.
केहरि वाहन सोहे भवानी. लांगुर बीर चलत अगवानी.
कर में खप्पर खड़्ग विराजै. जाको देख काल डर भाजै.
सोहे अस्त्र और त्रिशूला. जाते उठत शत्रु हिय शूला.
नगर कोटि में तुम्ही विराजत. तिहूँ लोक में डंका बाजत.
शुम्भ निशुम्भ दानव तुम मारे, रक्त बीज शंखन संहारे.
महिशासुर नृप अति अभिमानी. जेही अध भार मही अकुलानी.
रुप कराल कालिका धारा. सेन सहित तुम तिहि संहारा.
परी गाढ़ संतन पर जब जब, भई सहाय मातु तुम तब तब.
अमर पुरी अरु बासव लोका. तव महिमा सब कहे अशोका.
ज्वाला में है ज्योति तुम्हारी. तुम्हें सदा पूजें नर नारी.
प्रेम भक्ति से जो यश गावें. दुःख दरिद्र निकट नही आवे.
जोगी सुर नर कहत पुकारी. योग न हो बिन शक्ति तुम्हारी.
शंकर आचारज तप कीनो. काम अरु क्रोध जीति सब लीनो.
निशिदिन ध्यान धरो शंकर को. काहु काल नहिं सुमिरो तुमको.
शक्ति रुप को मरम न पायो. शक्ति गई तब मन पछतायो.
शरणागत हुई कीर्ति बखानी. जय जय जय जगदम्ब भवानी.
भई प्रसन्न आदि जगदम्बा. दई शक्ति नहिं कीन बिलम्बा.
मोको मात कश्ट अति घेरो. तुम बिन कौन हरे दुःख मेरो.
आशा तृश्णा निपट सतावे. रिपु मूरख मोहि अति डर पावै.
शत्रु नाश कीजै महारानी. सुमिरौं एकचित तुम्हें भवानी.
करो कृपा हे मातु दयाला. ऋद्धि-सिद्धि दे करहु निहाला.
जब लगि जियौ दया फ़ल पाऊं, तुम्हरे यश में सदा सुनाऊं.
दुर्गा चालीसा जो कोई गावै. सब सुख भोग परम पद पावै.
देवीदास शरण निज जानी. करहु कृपा जगदम्ब भवानी.
नमो नमो दुर्गे सुख करनी. नमो नमो अम्बे दुःख हरनी.
निरंकार है ज्योति तुम्हारी. तिहूँ लोक फ़ैली उजियारी.
शशी ललाट मुख महा विशाला. नेत्र लाल भृकुटी विकराला.
रुप मातु को अधिक सुहावे. दरश करत जन अति सुख पावे.
तुम संसार शक्ति लय कीना. पालन हेतु अन्न धन दीना.
अन्न्पूर्णा हुई जग पाला. तुम ही आदि सुन्दरी बाला.
प्रलयकाल सब नाशन हारी. तुम गौरी शिव शंकर प्यारी.
शिव योगी तुम्हारे गुण गावे. ब्रह्मा विष्णु तुम्हें नित ध्यावें.
रुप सरस्वती का तुम धारा. दे सुबुद्धि ऋषि मुनिन उबारा.
धरा रुप नरसिंह को अम्बा. प्रकट भई फ़ाड़ कर खम्बा.
रक्षा कर प्रहलाद बचायो. हिरणाकुश को स्वर्ग पठायो.
लक्ष्मी रुप धरो जग माहीं. श्री नारायण अंग समाहीं.
क्षीरसिन्धु में करत विलासा. दया सिन्धु दीजै मन आसा.
हिंगलाज में तुम्ही भवानी, महिमा अमित न जात बखानी.
मातंगी धूमावती माता. भूवनेश्वरी बगला सुखदाता.
श्री भैरव तारा जग तारणि. छिन्नभाल भव दुःख निवारिणी.
केहरि वाहन सोहे भवानी. लांगुर बीर चलत अगवानी.
कर में खप्पर खड़्ग विराजै. जाको देख काल डर भाजै.
सोहे अस्त्र और त्रिशूला. जाते उठत शत्रु हिय शूला.
नगर कोटि में तुम्ही विराजत. तिहूँ लोक में डंका बाजत.
शुम्भ निशुम्भ दानव तुम मारे, रक्त बीज शंखन संहारे.
महिशासुर नृप अति अभिमानी. जेही अध भार मही अकुलानी.
रुप कराल कालिका धारा. सेन सहित तुम तिहि संहारा.
परी गाढ़ संतन पर जब जब, भई सहाय मातु तुम तब तब.
अमर पुरी अरु बासव लोका. तव महिमा सब कहे अशोका.
ज्वाला में है ज्योति तुम्हारी. तुम्हें सदा पूजें नर नारी.
प्रेम भक्ति से जो यश गावें. दुःख दरिद्र निकट नही आवे.
जोगी सुर नर कहत पुकारी. योग न हो बिन शक्ति तुम्हारी.
शंकर आचारज तप कीनो. काम अरु क्रोध जीति सब लीनो.
निशिदिन ध्यान धरो शंकर को. काहु काल नहिं सुमिरो तुमको.
शक्ति रुप को मरम न पायो. शक्ति गई तब मन पछतायो.
शरणागत हुई कीर्ति बखानी. जय जय जय जगदम्ब भवानी.
भई प्रसन्न आदि जगदम्बा. दई शक्ति नहिं कीन बिलम्बा.
मोको मात कश्ट अति घेरो. तुम बिन कौन हरे दुःख मेरो.
आशा तृश्णा निपट सतावे. रिपु मूरख मोहि अति डर पावै.
शत्रु नाश कीजै महारानी. सुमिरौं एकचित तुम्हें भवानी.
करो कृपा हे मातु दयाला. ऋद्धि-सिद्धि दे करहु निहाला.
जब लगि जियौ दया फ़ल पाऊं, तुम्हरे यश में सदा सुनाऊं.
दुर्गा चालीसा जो कोई गावै. सब सुख भोग परम पद पावै.
देवीदास शरण निज जानी. करहु कृपा जगदम्ब भवानी.
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श्री लक्ष्मी चालीसा
॥ दोहा॥
॥ दोहा॥
मातु लक्ष्मी करि कृपा, करो हृदय में वास।
मनोकामना सिद्घ करि, परुवहु मेरी आस॥
॥ सोरठा॥ यही मोर अरदास, हाथ जोड़ विनती करुं।
सब विधि करौ सुवास, जय जननि जगदंबिका॥
॥ चौपाई ॥ सिन्धु सुता मैं सुमिरौ तोही।
ज्ञान बुद्घि विघा दो मोही ॥
तुम समान नहिं कोई उपकारी। सब विधि पुरवहु आस हमारी॥
जय जय जगत जननि जगदम्बा। सबकी तुम ही हो अवलम्बा॥
तुम ही हो सब घट घट वासी। विनती यही हमारी खासी॥
जगजननी जय सिन्धु कुमारी। दीनन की तुम हो हितकारी॥
विनवौं नित्य तुमहिं महारानी। कृपा करौ जग जननि भवानी॥
केहि विधि स्तुति करौं तिहारी। सुधि लीजै अपराध बिसारी॥
कृपा दृष्टि चितववो मम ओरी। जगजननी विनती सुन मोरी॥
ज्ञान बुद्घि जय सुख की दाता। संकट हरो हमारी माता॥
क्षीरसिन्धु जब विष्णु मथायो। चौदह रत्न सिन्धु में पायो॥
चौदह रत्न में तुम सुखरासी। सेवा कियो प्रभु बनि दासी॥
जब जब जन्म जहां प्रभु लीन्हा। रुप बदल तहं सेवा कीन्हा॥
स्वयं विष्णु जब नर तनु धारा। लीन्हेउ अवधपुरी अवतारा॥
तब तुम प्रगट जनकपुर माहीं। सेवा कियो हृदय पुलकाहीं॥
अपनाया तोहि अन्तर्यामी। विश्व विदित त्रिभुवन की स्वामी॥
तुम सम प्रबल शक्ति नहीं आनी। कहं लौ महिमा कहौं बखानी॥
मन क्रम वचन करै सेवकाई। मन इच्छित वांछित फल पाई॥
तजि छल कपट और चतुराई। पूजहिं विविध भांति मनलाई॥
और हाल मैं कहौं बुझाई। जो यह पाठ करै मन लाई॥
ताको कोई कष्ट नोई। मन इच्छित पावै फल सोई॥
त्राहि त्राहि जय दुःख निवारिणि। त्रिविध ताप भव बंधन हारिणी॥
जो चालीसा पढ़ै पढ़ावै। ध्यान लगाकर सुनै सुनावै॥
ताकौ कोई न रोग सतावै। पुत्र आदि धन सम्पत्ति पावै॥
पुत्रहीन अरु संपति हीना। अन्ध बधिर कोढ़ी अति दीना॥
विप्र बोलाय कै पाठ करावै। शंका दिल में कभी न लावै॥
पाठ करावै दिन चालीसा। ता पर कृपा करैं गौरीसा॥
सुख सम्पत्ति बहुत सी पावै। कमी नहीं काहू की आवै॥
बारह मास करै जो पूजा। तेहि सम धन्य और नहिं दूजा॥
प्रतिदिन पाठ करै मन माही। उन सम कोइ जग में कहुं नाहीं॥
बहुविधि क्या मैं करौं बड़ाई। लेय परीक्षा ध्यान लगाई॥
करि विश्वास करै व्रत नेमा। होय सिद्घ उपजै उर प्रेमा॥
जय जय जय लक्ष्मी भवानी। सब में व्यापित हो गुण खानी॥
तुम्हरो तेज प्रबल जग माहीं। तुम सम कोउ दयालु कहुं नाहिं॥
मोहि अनाथ की सुधि अब लीजै। संकट काटि भक्ति मोहि दीजै॥
भूल चूक करि क्षमा हमारी। दर्शन दजै दशा निहारी॥
बिन दर्शन व्याकुल अधिकारी। तुमहि अछत दुःख सहते भारी॥
नहिं मोहिं ज्ञान बुद्घि है तन में। सब जानत हो अपने मन में॥
रुप चतुर्भुज करके धारण। कष्ट मोर अब करहु निवारण॥
केहि प्रकार मैं करौं बड़ाई। ज्ञान बुद्घि मोहि नहिं अधिकाई॥
॥ दोहा॥त्राहि त्राहि दुख हारिणी, हरो वेगि सब त्रास।
जयति जयति जय लक्ष्मी, करो शत्रु को नाश॥
रामदास धरि ध्यान नित, विनय करत कर जोर।
मातु लक्ष्मी दास पर, करहु दया की कोर॥॥.
मनोकामना सिद्घ करि, परुवहु मेरी आस॥
॥ सोरठा॥ यही मोर अरदास, हाथ जोड़ विनती करुं।
सब विधि करौ सुवास, जय जननि जगदंबिका॥
॥ चौपाई ॥ सिन्धु सुता मैं सुमिरौ तोही।
ज्ञान बुद्घि विघा दो मोही ॥
तुम समान नहिं कोई उपकारी। सब विधि पुरवहु आस हमारी॥
जय जय जगत जननि जगदम्बा। सबकी तुम ही हो अवलम्बा॥
तुम ही हो सब घट घट वासी। विनती यही हमारी खासी॥
जगजननी जय सिन्धु कुमारी। दीनन की तुम हो हितकारी॥
विनवौं नित्य तुमहिं महारानी। कृपा करौ जग जननि भवानी॥
केहि विधि स्तुति करौं तिहारी। सुधि लीजै अपराध बिसारी॥
कृपा दृष्टि चितववो मम ओरी। जगजननी विनती सुन मोरी॥
ज्ञान बुद्घि जय सुख की दाता। संकट हरो हमारी माता॥
क्षीरसिन्धु जब विष्णु मथायो। चौदह रत्न सिन्धु में पायो॥
चौदह रत्न में तुम सुखरासी। सेवा कियो प्रभु बनि दासी॥
जब जब जन्म जहां प्रभु लीन्हा। रुप बदल तहं सेवा कीन्हा॥
स्वयं विष्णु जब नर तनु धारा। लीन्हेउ अवधपुरी अवतारा॥
तब तुम प्रगट जनकपुर माहीं। सेवा कियो हृदय पुलकाहीं॥
अपनाया तोहि अन्तर्यामी। विश्व विदित त्रिभुवन की स्वामी॥
तुम सम प्रबल शक्ति नहीं आनी। कहं लौ महिमा कहौं बखानी॥
मन क्रम वचन करै सेवकाई। मन इच्छित वांछित फल पाई॥
तजि छल कपट और चतुराई। पूजहिं विविध भांति मनलाई॥
और हाल मैं कहौं बुझाई। जो यह पाठ करै मन लाई॥
ताको कोई कष्ट नोई। मन इच्छित पावै फल सोई॥
त्राहि त्राहि जय दुःख निवारिणि। त्रिविध ताप भव बंधन हारिणी॥
जो चालीसा पढ़ै पढ़ावै। ध्यान लगाकर सुनै सुनावै॥
ताकौ कोई न रोग सतावै। पुत्र आदि धन सम्पत्ति पावै॥
पुत्रहीन अरु संपति हीना। अन्ध बधिर कोढ़ी अति दीना॥
विप्र बोलाय कै पाठ करावै। शंका दिल में कभी न लावै॥
पाठ करावै दिन चालीसा। ता पर कृपा करैं गौरीसा॥
सुख सम्पत्ति बहुत सी पावै। कमी नहीं काहू की आवै॥
बारह मास करै जो पूजा। तेहि सम धन्य और नहिं दूजा॥
प्रतिदिन पाठ करै मन माही। उन सम कोइ जग में कहुं नाहीं॥
बहुविधि क्या मैं करौं बड़ाई। लेय परीक्षा ध्यान लगाई॥
करि विश्वास करै व्रत नेमा। होय सिद्घ उपजै उर प्रेमा॥
जय जय जय लक्ष्मी भवानी। सब में व्यापित हो गुण खानी॥
तुम्हरो तेज प्रबल जग माहीं। तुम सम कोउ दयालु कहुं नाहिं॥
मोहि अनाथ की सुधि अब लीजै। संकट काटि भक्ति मोहि दीजै॥
भूल चूक करि क्षमा हमारी। दर्शन दजै दशा निहारी॥
बिन दर्शन व्याकुल अधिकारी। तुमहि अछत दुःख सहते भारी॥
नहिं मोहिं ज्ञान बुद्घि है तन में। सब जानत हो अपने मन में॥
रुप चतुर्भुज करके धारण। कष्ट मोर अब करहु निवारण॥
केहि प्रकार मैं करौं बड़ाई। ज्ञान बुद्घि मोहि नहिं अधिकाई॥
॥ दोहा॥त्राहि त्राहि दुख हारिणी, हरो वेगि सब त्रास।
जयति जयति जय लक्ष्मी, करो शत्रु को नाश॥
रामदास धरि ध्यान नित, विनय करत कर जोर।
मातु लक्ष्मी दास पर, करहु दया की कोर॥॥.
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श्री महाकाली चालीसा
दोहा मात श्री महाकालिका ध्याऊँ शीश नवाय ।
जान मोहि निज दास सब दीजै काज बनाय ॥
नमो महा कालिका भवानी। महिमा अमित न जाय बखानी॥
तुम्हारो यश तिहुँ लोकन छायो। सुर नर मुनिन सबन गुण गायो॥
परी गाढ़ देवन पर जब जब। कियो सहाय मात तुम तब तब॥
महाकालिका घोर स्वरूपा। सोहत श्यामल बदन अनूपा॥
जिभ्या लाल दन्त विकराला। तीन नेत्र गल मुण्डन माला॥
चार भुज शिव शोभित आसन। खड्ग खप्पर कीन्हें सब धारण॥
रहें योगिनी चौसठ संगा। दैत्यन के मद कीन्हा भंगा॥
चण्ड मुण्ड को पटक पछारा। पल में रक्तबीज को मारा॥
दियो सहजन दैत्यन को मारी। मच्यो मध्य रण हाहाकारी॥
कीन्हो है फिर क्रोध अपारा। बढ़ी अगारी करत संहारा॥
देख दशा सब सुर घबड़ाये। पास शम्भू के हैं फिर धाये॥
विनय करी शंकर की जा के। हाल युद्ध का दियो बता के॥
तब शिव दियो देह विस्तारी। गयो लेट आगे त्रिपुरारी॥
ज्यों ही काली बढ़ी अंगारी। खड़ा पैर उर दियो निहारी॥
देखा महादेव को जबही। जीभ काढ़ि लज्जित भई तबही॥
भई शान्ति चहुँ आनन्द छायो। नभ से सुरन सुमन बरसायो॥
जय जय जय ध्वनि भई आकाशा। सुर नर मुनि सब हुए हुलाशा॥
दुष्टन के तुम मारन कारन। कीन्हा चार रूप निज धारण॥
चण्डी दुर्गा काली माई। और महा काली कहलाई॥
पूजत तुमहि सकल संसारा। करत सदा डर ध्यान तुम्हारा॥
मैं शरणागत मात तिहारी। करौं आय अब मोहि सुखारी॥
सुमिरौ महा कालिका माई। होउ सहाय मात तुम आई॥
धरूँ ध्यान निश दिन तब माता। सकल दुःख मातु करहु निपाता॥
आओ मात न देर लगाओ। मम शत्रुघ्न को पकड़ नशाओ॥
सुनहु मात यह विनय हमारी। पूरण हो अभिलाषा सारी॥
मात करहु तुम रक्षा आके। मम शत्रुघ्न को देव मिटा को॥
निश वासर मैं तुम्हें मनाऊं। सदा तुम्हारे ही गुण गाउं॥
दया दृष्टि अब मोपर कीजै। रहूँ सुखी ये ही वर दीजै॥
नमो नमो निज काज सैवारनि। नमो नमो हे खलन विदारनि॥
नमो नमो जन बाधा हरनी। नमो नमो दुष्टन मद छरनी॥
नमो नमो जय काली महारानी। त्रिभुवन में नहिं तुम्हरी सानी॥
भक्तन पे हो मात दयाला। काटहु आय सकल भव जाला॥
मैं हूँ शरण तुम्हारी अम्बा। आवहू बेगि न करहु विलम्बा॥
मुझ पर होके मात दयाला। सब विधि कीजै मोहि निहाला॥
करे नित्य जो तुम्हरो पूजन। ताके काज होय सब पूरन॥
निर्धन हो जो बहु धन पावै। दुश्मन हो सो मित्र हो जावै॥
जिन घर हो भूत बैताला। भागि जाय घर से तत्काला॥
रहे नही फिर दुःख लवलेशा। मिट जाय जो होय कलेशा॥
जो कुछ इच्छा होवें मन में। संशय नहिं पूरन हो छण में॥
औरहु फल संसारिक जेते। तेरी कृपा मिलैं सब तेते॥
दोहा - महाकलिका की पढ़ै नित चालीसा जोय।
मनवांछित फल पावहि गोविन्द जानौ सोय॥
दोहा मात श्री महाकालिका ध्याऊँ शीश नवाय ।
जान मोहि निज दास सब दीजै काज बनाय ॥
नमो महा कालिका भवानी। महिमा अमित न जाय बखानी॥
तुम्हारो यश तिहुँ लोकन छायो। सुर नर मुनिन सबन गुण गायो॥
परी गाढ़ देवन पर जब जब। कियो सहाय मात तुम तब तब॥
महाकालिका घोर स्वरूपा। सोहत श्यामल बदन अनूपा॥
जिभ्या लाल दन्त विकराला। तीन नेत्र गल मुण्डन माला॥
चार भुज शिव शोभित आसन। खड्ग खप्पर कीन्हें सब धारण॥
रहें योगिनी चौसठ संगा। दैत्यन के मद कीन्हा भंगा॥
चण्ड मुण्ड को पटक पछारा। पल में रक्तबीज को मारा॥
दियो सहजन दैत्यन को मारी। मच्यो मध्य रण हाहाकारी॥
कीन्हो है फिर क्रोध अपारा। बढ़ी अगारी करत संहारा॥
देख दशा सब सुर घबड़ाये। पास शम्भू के हैं फिर धाये॥
विनय करी शंकर की जा के। हाल युद्ध का दियो बता के॥
तब शिव दियो देह विस्तारी। गयो लेट आगे त्रिपुरारी॥
ज्यों ही काली बढ़ी अंगारी। खड़ा पैर उर दियो निहारी॥
देखा महादेव को जबही। जीभ काढ़ि लज्जित भई तबही॥
भई शान्ति चहुँ आनन्द छायो। नभ से सुरन सुमन बरसायो॥
जय जय जय ध्वनि भई आकाशा। सुर नर मुनि सब हुए हुलाशा॥
दुष्टन के तुम मारन कारन। कीन्हा चार रूप निज धारण॥
चण्डी दुर्गा काली माई। और महा काली कहलाई॥
पूजत तुमहि सकल संसारा। करत सदा डर ध्यान तुम्हारा॥
मैं शरणागत मात तिहारी। करौं आय अब मोहि सुखारी॥
सुमिरौ महा कालिका माई। होउ सहाय मात तुम आई॥
धरूँ ध्यान निश दिन तब माता। सकल दुःख मातु करहु निपाता॥
आओ मात न देर लगाओ। मम शत्रुघ्न को पकड़ नशाओ॥
सुनहु मात यह विनय हमारी। पूरण हो अभिलाषा सारी॥
मात करहु तुम रक्षा आके। मम शत्रुघ्न को देव मिटा को॥
निश वासर मैं तुम्हें मनाऊं। सदा तुम्हारे ही गुण गाउं॥
दया दृष्टि अब मोपर कीजै। रहूँ सुखी ये ही वर दीजै॥
नमो नमो निज काज सैवारनि। नमो नमो हे खलन विदारनि॥
नमो नमो जन बाधा हरनी। नमो नमो दुष्टन मद छरनी॥
नमो नमो जय काली महारानी। त्रिभुवन में नहिं तुम्हरी सानी॥
भक्तन पे हो मात दयाला। काटहु आय सकल भव जाला॥
मैं हूँ शरण तुम्हारी अम्बा। आवहू बेगि न करहु विलम्बा॥
मुझ पर होके मात दयाला। सब विधि कीजै मोहि निहाला॥
करे नित्य जो तुम्हरो पूजन। ताके काज होय सब पूरन॥
निर्धन हो जो बहु धन पावै। दुश्मन हो सो मित्र हो जावै॥
जिन घर हो भूत बैताला। भागि जाय घर से तत्काला॥
रहे नही फिर दुःख लवलेशा। मिट जाय जो होय कलेशा॥
जो कुछ इच्छा होवें मन में। संशय नहिं पूरन हो छण में॥
औरहु फल संसारिक जेते। तेरी कृपा मिलैं सब तेते॥
दोहा - महाकलिका की पढ़ै नित चालीसा जोय।
मनवांछित फल पावहि गोविन्द जानौ सोय॥
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